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आया वसंत / कुमार रवींद्र

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आया वसंत
फिर फूले हैं
संथाल परगना के जंगल
 
रितु वनकन्या की
कनखी से निकली
पूरे वन में पैठी
दिन खेल रहा परछाईं से
जो महुआ के नीचे बैठी
 
साँसें
मिठास को टेर रहीं
टहनी-टहनी कोंपल-कोंपल
 
पीली धोती पहने पूरीं
चौकें श्यामा ने आंगन में
रितु-छुवनों का संगीत बसा
उसके पायल औ' कंगन में
 
नवजात
सुखी इच्छाओं से
है भरा हुआ उसका आँचल
 
खत आया नहीं कई दिन से
उसके परदेसी साजन का
गिन रहा फाग को दिन कितने
उसकी माला का हर मनका
 
कैसे बीतेंगे
इतने दिन
पड़ रही नहीं उसको है कल