Last modified on 25 अक्टूबर 2013, at 18:15

कादम्बरी / पृष्ठ 18 / दामोदर झा

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:15, 25 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दामोदर झा |अनुवादक= |संग्रह=कादम्...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

9.
पृथिवी अर्जन सुलभ काज अपना भुज रखलनि
भोग विघ्नकारी पालन मन्त्रीके देलनि।
जे राजा कृतकृत्य भोग तनिकर भूषण थिक
शत्रु विजय रत नृपति हेतु से बड़ दषण थिक।

10.
कोनो कार्य शेष नहि छल ते रहितो बैसल
विषय-वासना सुखमे छला सतत ओ पैसल।
युवा वयस सुन्दर स्वरूप् छल तरुणी-मनहर
सकल कलामे कुशल लहथि सुख सबहिं निरन्तर

11.
नहि से क्रीड़ा भोग बिलासो ओ गोष्ठी रस
ई राजा नहि भोगल जकरा सदिखन निज वश।
सब सुख-भोग दिवानिशि करितो ई अवनीश्वर
एक मात्र सन्तान-सुखक नहि पओलनि अवसर॥

12.
जहिना बीतल जाय क्रमहिं हिनकर नव यौवन
पुत्रहीनता-शोक हृदयमे रखलक आसन।
अन्तःपुर रहितो बहुतो रानी सुखनिधि के
छली बिलासवती अतिप्रिय प्राणहुँसँ अधिके॥

13.
से रानी पतिसँ आज्ञा लय शुभ वासरमे
महाकाल पूजय गेली बाहर मन्दिरमे।
बाँचल जाय पुराण प्रसंग ओहिठाँ सुनलनि
नहि अपुत्रके स्वर्गलोक हो ई मन गुनलनि॥