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कादम्बरी / पृष्ठ 80 / दामोदर झा

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20.
एतबा सुनिते राजकुमार तुरत बहरयला
घोड़ा घोड़ा कहिते झट अपना घर अयला।
भए तैयार पत्रलेखाके सङमे लेलनि
अपना पाछूमे इन्द्रायुधपर बैसओलनि॥

21.
केयूरक सङ अपनो हरि उत्तर मुह कयलनि
टपटप करइत हेमकूट गिरि मारग लेलनि।
तेज चालि चलि फाटकर जा ओतय उतरला
द्वारपालके घोड़ा दय भीतर दिशि बढ़ला॥

22.
प्रमदवनहिं एक भाग कमलिनीसर केर तटमे
हिमगृहमे ओ पड़लि सखी सब छलनि निकटमे।
चन्दन बर्फ उशीर चन्द्र घसि लेप बनाबए
छन छन पुनि पुनि हुनका सगरे देह लगाबए॥

23.
पहुँचथि चन्द्रापीड़ निरखि ओ बैसय लगली
शपथ सहित हठ कयल कुमार पुनि सुतले रहली।
कादम्बरी निंघाड़ि पत्रलेखाके देखल
रती रमा पार्वती गिरा वा से अवलेखल॥

24.
चन्द्रापीड़ कहल ई परिचारिका हमर थिक
सदिखन सङमे रहय हमर जीवन दोसर थिक।
सुनिते कादम्बरी आनि लगमे बैसओलनि
एक हाथ कर दोसर हाथ पीठपर रखलनि॥