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कादम्बरी / पृष्ठ 146 / दामोदर झा

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29.
सदय भाव टा सँ आश्वस्त ताहि हम कहलहुँ
के छी अहाँ दयालु कथी लय हमरा गहलहुँ।
मांसक लोभी जकाँ बगय तँ नहि लगैत अछि
नीन पूर्ण हयबाक समय ओ नहि तकैत अछि।

30.
छोडू हमरा हमहूँ जायब निज अभिमत थल
हमरा छोड़ने हानि हयत की रखने संबल।
ओ कहलक हे सज्जन, हम जातिक चण्डाले।
क्रूर कर्म अछि स्वामि निदेशे छी वनपाले॥

31.
स्वामी हमर पक्वणाधिप चण्डालक नायक
छथि बड़का चण्डालकृतान्तक सतत सहायक।
हुनक तनूजा युवती छथि तनिकर आदेशे
घूमै छी पशु पक्षी धरबाकेर उद्देशे॥

32.
अहाँ छलहुँ जाबालिक आश्रम वक्ता खग
वैशम्पायन नाम गुणी विद्या प्रसिद्ध जग।
से हमरो स्वामिनी सुनल धरबा लय कहलनि
हमरे सन सैकड़ो दहो दिशि भील पठओलनि॥

33.
बड़े भागसँ आइ अहाँ हमरा कर अयलहुँ
स्वामिनीक आह्लादक संग प्रसाद देअयलहुँ।
बिनती कय हम कहल अहूकें तरुण गनै छी
प्रिया विरह उत्कण्ठा केर सब बात जनै छी॥