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कवि-1 / मरीना स्विताएवा

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बहुत दूर की बात छेड़ता है कवि ।
बहुत दूर की बात खींच ले जाती है कवि को ।

ग्रहों, नक्षत्रों ...... सैकड़ों मोड़ों से होती कहानियों की तरह
हाँ और ना के बीच
वह घण्टाघर की ओर से हा‍थ हिलाता है
उखाड़ फेंकता है सब खूँटें और बंधन .....

कि पुच्‍छलतारों का रास्‍ता होता है कवियों का रास्‍ता --
बहुत लम्बी कड़ी कारणत्‍व की --
यही है उसका सूत्र ! ऊपर उठाओ माथा --
निराश होना होगा तुम्‍हें
कि कवियों के ग्रहण का
पूर्वानुमान नहीं लगा सकता कोई पंचांग ।

कवि वह होता है जो मिला देता है ताश के पत्‍ते
गड्ड-मड्ड कर देता है भार और गिनती,
कवि वह होता है जो पूछता है स्‍कूली डेस्‍क से
जो काँट का भी खा डालता है दिमाग,

जो बास्‍तील के ताबूत में भी
लहरा रहा होता है हरे पेड़ की तरह,
जिसके हमेशा क्षीण पड़ जाते हैं पद्-चिन्‍ह,
वह ऐसी गाड़ी है जो हमेशा आती है लेट
इसलिए कि पुच्‍छलतारों का रास्‍ता
होता है कवियों का रास्‍ता जलता हुआ
न कि झुलसाता हुआ,

उद्ध्ग्नि लेकिन संतुलित, शान्त,
यह रास्‍ता टेढ़ा-मेढ़ा
पंचांग या जंत्रियों के लिए बिल्‍कुल अज्ञात !