Last modified on 3 दिसम्बर 2013, at 17:45

जिन श्रीराधा के करैं नित श्रीहरि गुन गान / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:45, 3 दिसम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जिन श्रीराधा के करैं नित श्रीहरि गुन गान।
जिन के रस-लोभी रहैं नित रसमय रसखान॥
प्रेम भरे हिय सौं करैं स्रवन-मनन, नित ध्यान।
सुनत नाम ’राधा’ तुरत भूलै तन कौ भान॥
करैं नित्य दृग-‌अलि मधुर मुख-पंकज-मधु-पान।
प्रमुदित, पुलकित रहैं लखि अधर मधुर मुसुकान॥
जो आत्मा हरि की परम, जो नित जीवन-प्रान।
बिसरि अपुनपौ रहैं नित जिन के बस भगवान॥
सहज दयामयि राधिका, सो करि कृपा महान।
करत रहैं मो अधम कौं सदा चरन-रज दान॥