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बाभनक गाम / तारानंद वियोगी

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(पधारि रहल अछि गर्दमगोल मचौने एकैसम शताब्दी आ कानैए बाभनक गाम)


बलात्कृत माता जकां
कानैए बाभनक गाम।

बेदम-अपस्यांत-बेसहारा स्त्री
जकर संतानक हत्या क' देलकैए बलात्कारी
जकर पति कें ल' गेलै पकडि क' अपराधी

जकर जीवित रहबाक कोनो तर्क नहि रहि गेलैए
ओकर अपने अवधारणा मे

मुदा आफन तोडि गर्दमिसान
कानैए बलात्कृत स्त्री।

ई स्त्री थिक?
आ कि निज यैह थिक बाभनक गाम?
(शास्त्रीय संस्कृतिक जननी )

ओकर हाक्रोश सॅ फाटि रहलैए
आर्यावर्तक छाती,
बिला गेलनि महाराज मनुक निन्न-चैन।
बशिष्ठ-बादरायणक नोर झहरैत ताबडतोड
कातिक-अगहन मे उबडुब करैए कोशी-कमला।

एहि ठाम सॅ भंडार-कोण मे, सुनियौ
कानैए बाभनक गाम।
आ उत्तर दिस सॅ
रोदन पसारने छै एक रोगग्रस्त कुकूर।

केहन भयाबन दृश्य छै

दफादार ठकठका रहल अछि
पक्की सडक पर अपन लाठी
आ, कानैए बाभनक गाम।

00000

कानैए बाभनक गाम
तॅ स्पष्ट बुझबाक थिक
जे कनैत रहए नहि चाहैत अछि।

कानब
कानबाक कारण के
नष्ट हेबाक अभीप्सा थिक।

कानब थिक निवेदन
'कारण' सभक खात्मा के----

 --उठू उठू नगरक लोक
 --उठू गोरथारी मे सूतल देवता लोकनि
 --ऐंठार पर फेकल ब्रह्म, उठू
 --शौचस्थान मे गोडल काली, उठू
 --शिव, बहराउ कने भांगक आंटी सॅ
 --धर्मराज, पसीखानाक माटि तर सॅ बहराउ
 --जेहन करै गेलहुं तेहने खाइ गेलौं खत्ता
   अहां लोकनि तॅ देवता छी,
      दै जाउ माफी
   करै जाउ रछिया
   दोहाइ ज्वालामुखी के सहाय सातो बहीन शीतला।

कानब थिक अभिव्यक्ति
भीतर उठल उद्रेक के।

शब्द नहि, शब्दातीत मे थाहू
एहि नाद कें कवि
व्याकरण नहि छैक एहि उद्रेक के
कि अहां रचय लागब साहित्य।

साहित्य सॅ बाहर घटित
एक साहित्यिक घटना थिक
कानब।

सुनू कवि, विनती
कवि, उद्रेक सुनू।

थोडेक कालक लेल
मानि लिय' एहि गाम कें बेचिरागी
आ एकर चौहद्दी सॅ बहराइत
हाक्रोश कें सुनू कवि, शब्दातीत मे।
बुक्क फाडि कानैए बाभनक गाम।

नहि?

०००००


दृष्टि भेल सभतरि भोत्थर
शिथिल भेल नेत्र-ज्योति
बहीर भेल दुनू कान
संवेदनहीन भेल त्वचा शरीरक

जबदाह भेल मोन
थकित भेल तन
भुजबल अपंग भेल

पांच हजार बर्ख मे
तते-तते होइत रहलै मिथ्या-माहात्म्य
जे
विदा लेलक जीवनक स्पंदन
आ, विदा लेलक जीवन्त उछाह।
विदा लेलक विस्मय,तॅ बुझू
विदा लेलक
जीवन-धारणक अनुराग।

००००००


किए जीबैए बाभनक गाम एखनो
हमरा कहू, कवि

राडक गाम, चमारक गाम तॅ जीबैए
जे ओकरा भोगबाक छै थोडेक दिन उछाह
हगबा-मुतबाक छै थोडे दिन
महाराज मनुक समाधि पर।
धियापुता कें बीतल जुगक
कथा सब सुनेबाक छै।
मना लेबाक छै थोडे दिन मुक्ति-पर्व।

राडक गाम, चमारक गाम जॅ जीबैए
तॅ मानै छी जे थोडे पलखति लेबाक
बहाना छै ओकरा लग पुरजोर।
मुदा बाभनक गाम किए जीबैए?
   आइयो? एखनो?

हॅसै लेल जीबैए राडक गाम,चमारक गाम
तॅ कानै लेल किए जीबैए बाभनक गाम?

यैह होइ कवि, यैह होइ?
पांच हजार बर्खक सदाबहार रणनितिक
यैह फल होइ?
यैह अन्त होइन महाराज मनुक?

०००००


लोकमे नहि, लोकक आभामंडल मे थाहू
एहि रुदन कें कवि
धूआं सॅ करू आगिक निष्पत्ति
ऋषि बनू कवि, ऋषि
समय कें चीडि क' देखू भविष्यक सर्वनाश।

ई जे घटाटोप रुदन सुनै छी अहोरात्र
मोन राखब
कानै नहि जाइ छथि बाभन लोकनि
कानै तॅ अछि बाभनक गाम।

आखिर बाभन कानताह किए?
ओ छथि अफसर, ओ छथि बेपारी
ओ छथि प्राइवेट,तॅ वैह छथि सरकारी
किसान छथि ओ आ महाजनो ओ छथि
तखन ओ किए कानताह?

कोन जाति सं कम छै बाभन मे गांजाक सहचार?
आ कि बिकरी अंगरेजी दारूक?
ककरा सॅ कम छै माफिया?
आ कि सर्वसोंख राजनेता
   कंबल फेकि क' घी पीनिहार?
तखन ओ किए कानताह?

ओ लोकनि तॅ हॅसै जाइ छथि जे
बनल कहुना अप्पन पार्टीक सरकार।
जेल नहि जाय पडलनि मिसर जी कें।
कादो-कादो भेला भरला भादो मे पासवान-जादो।
हुनका लग तॅ नित्तह बनै छनि बहन्ना नव-नव हॅसबाक।

नित्तह रोज भने
घटल जाइत हो जीवनक संभावना
मुदा, ओ किए कानताह?
कानै तॅ अछि बाभनक गाम।

००००००


सबटा हरहर-खटखट कें जुमा क' फेकैत
भांजैत अपन चतुराइक खिस्सा,
दुनियां कें दुनियें दिस आपस घुरबैत
बाभन लोकनि
घुरै जाइ छथि जखन अपन-अपन गाम;
अपन कपडा-लत्ताक संगे-संग
अपन मुखौटा, अपन रंग, अपन बाना
अपन धर्म, कर्म, मर्म
अपन विज्ञान-बुद्धि, अपन प्रगतिशीलता
सब कथू कें उतारि लै जाइ छथि देह पर सॅ
आ, तखन प्रकृतस्थ होइ छथि।

कते काल आफिसक बरदी मे बसताह गाम?
कते काल धरि बनल रहता विनम्र पुरोहित?
कते काल विज्ञानी, पण्डित?
कते काल धरि आखिर हपसि-हपसि
   जनहित लेल भाषण करताह?

उतारि लै जाइ छथि अपन-अपन लबादा
आ, तखन सहज होइ छथि।

एतय
एहि चौहद्दी मे
एहि वायुमंडल मे आबि क'
ई घटना घटैए
एतय नित्त दिन, नित्त काल।

आ देखू
जे एही गामक चौहद्दी मे रहै छनि हुनक स्त्री
हुनक संतान एही वायुमंडल मे भ' रहलनि पकठोस
एही चौहद्दी मे रन्हाइ छनि हुनक भात
हुनक वीर्य एत्तहि बनै छनि
एत्तहि पोसाइ छनि हुनक भ्रूण।

सुच्चा
नग्न
ब्रह्मवादक
आरामदेह वस्त्र मे सुस्ताइत
सहज, प्रकृतस्थ
बाभनक नव पीढी
एही गामक बाट द' क'
एकैसम शताब्दी मे ढुकि रहल अछि

कानैए बाभनक गाम।

०००००


बाभनक गाम मे दुनियां जे बसल छै
'आदर्श धर्मराज्य' ओकर संस्कार के
ओही आदर्श मे जीबैए बाभनक गाम।

प्रवेश करैत ओहि दुनियां मे
कँपैत अछि सम-वेदना।
लोकतंत्र ओकर आंखि महक कांची छिऐक।
गूंह-मूत पोछबाक काज अबै छै ओतय संविधानक पन्ना।
ओहि दुनियां मे
बांकी स'ब कें पयर तर रखबाक चलन छै।

राड-चमार नहि पसिन्न करत पयर तर रहब
तँ से ओकरा सभक प्रताप,
मुदा बाभन एहि पर आक्रोशें फाटि सकथि
तहू सँ गेलाह?
देखि क' ओ एहन घोर कलजुग, बताहो नहि होथि?
एहू सँ गेलाह जे अनीति एहन पाबि
बढा ल' सकथि अपन रक्तचाप,
हार्टअटैक कें बजा आनि सकथि,
गारि-सरापि सकथि
आधुनिकता कें, लोकतंत्र कें
बाभन की एहू सँ गेलाह?

नहि मानथुन भने क्यो ब्रह्मवादक माहात्म्य
तँ से हुनका सभक प्रताप
मुदा बाभन की एहू सँ गेलाह
जे समाजवादक दिस पोन क' क' छोडथु पाद
विज्ञान कें,राजनीति कें
ऋषि-मुनिक झांट बताबथु,
आ अपने सन जनमा सकथु अपन बच्चा
बाभन की एहू सँ गेलाह?

०००००


भ'रहलैए जीवनक संग माफियाबाजी
एकटा बलात्कृत माता
            चेतना
बेदम अपस्यांत बेसहारा कानि रहल अछि
बीया जकाँ छीटल अछि चहुँदिस
निष्पन्द-निश्चेत ब्राह्मण-शिशु
   --सहज प्रकृतस्थ अपन पिता सँ पढैत जीवनक पाठ।

पधारि रहल अछि गर्दमगोल मचौने
एकैसम शताब्दी

कानैए बाभनक गाम।