Last modified on 29 दिसम्बर 2013, at 09:06

चट्टान / राजा खुगशाल

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:06, 29 दिसम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजा खुगशाल |अनुवादक= |संग्रह=सदी ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

ऐसे जमे हैं पहाड़ पर पांव उसके
कि समूची दिशा को ओझल करती हुई वह
गति की खिलाफत के सिवाय और कुछ नहीं है

उसका न मन है, न मस्तिष्क
उसमें न द्वंद्व है, न दया
जीवन और मृत्युव के संदर्भों से दूर वह कठोरता
ॠतु की किसी भी रंगत में शामिल नहीं है

उसके कंधों पर
आसमान से उतरकर पंख खुजलाते हैं गरुड़
या बर्फानी हवाओं से घबराकर
चाय पीते हैं पर्वतारोही

उसकी तुलना में कोई चीज नहीं दूर-दूर तक
वह अमानवीय निर्ममता
महज धैर्य नापती है जीवन का।