Last modified on 5 जनवरी 2014, at 10:33

नदी / अनुलता राज नायर

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:33, 5 जनवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनुलता राज नायर |अनुवादक= |संग्रह= ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

नदी
मांग रही है मुझ से
मेरे आँसू
कि वो समंदर होना चाहती है
बिना समंदर से मिले.
नदी एक स्त्री है
हर स्त्री की तरह घायल
अपने जख्म खुद चाटती हुई...
जानती है जुटा लेगी
पर्याप्त खारापन
कई और स्त्रियों के साथ मिल कर,
जो बहा रहीं हैं अपने स्वेद और अश्रु

बाहरी आवरण के भीतर
सब की सब स्त्रियाँ खारी हैं
कि सबके दुःख और दर्द एक से है !!

निष्कंप बहती रही नदी
जब स्त्रियाँ डूबी नदी में,
और तट पर लगे वृक्ष कांप उठे
पुष्प वर्षा हुई!!