तुम्हारा दर्द
कैक्टस में उलझी
हवा की भाँति
बाहर आने को निरंतर
फड़फड़ा रहा है।
क्यों नहीं तुम
अपने दर्द की अभिव्यक्ति को
मेरे समक्ष बहक जाने देते?
तुम्हारे सर्द हाथ
तुम्हारी तपती आँखों को
ठंडक पहुँचाने में असमर्थ रहेंगे/रहे हैं!
आओ
मैं तुम्हारी जलती पलकों पर
अपने अधर रख दूँ,
फिर
तुम्हारी गर्म साँसें, तुम्हें
झुलसाने नहीं पायेंगी!
तब तुम्हारे लिए
(और मेरे लिए भी)
जीना आसान हो जायेगा।