Last modified on 6 फ़रवरी 2014, at 17:42

बदलते विश्वास / उमा अर्पिता

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:42, 6 फ़रवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उमा अर्पिता |अनुवादक= |संग्रह=धूप ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

एक दिन बेसुध-सी
पत्ते-पत्ते पर
तुम्हारा नाम आँक आई थी।
धूप भी तुम्हारे नाम
आँक दी और चाँदनी भी
तुम्हारे ही नाम आँक आई थी
हवा के पर बाँधे/पंछी की आतुरता समेटे
डाल-डाल से
तुम्हें पुकार आई थी,
तुम्हें अपना आधार बना
कोने-कोने
विश्वास के गुलाब रोप आई थी
मन के जिन उद्वेगों ने
सागर की लहरों को भी
बौना घोषित कर दिया था,
उन्हीं उद्वेगों पर
एक दिन तुम हँस दोगे
इतना तो
विश्वास न था!