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अवसर / उमा अर्पिता

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कितना असहनीय था
मेरे लिए
तुम्हारा पता
(जो मेरी समस्त आस्थाओं का आधार है)
जानते हुए
तुम तक न पहुँच पाना।
लेकिन अब--
तुम्हारी एक आवाज पर
समाज द्वारा मर्यादित
सब लक्ष्मण-रेखायें
मेरे लिए मिट गयीं।
अब, जब कि
मेरी भावनाओं को
उड़ने के लिए
तुम्हारी नीली आँखों का
खुला आकाश मिल गया है, तो
क्यों न जी भर उडूँ?