Last modified on 18 मार्च 2014, at 12:13

ललक / हरिऔध

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:13, 18 मार्च 2014 का अवतरण (Sharda suman moved page ललक to ललक / हरिऔध)

 बीत पाते नहीं दुखों के दिन।

कब तलक दुख सहें वु+ढ़ें काँखें।

देखने के लिए सुखों के दिन।

है हमारी तरस रहीं आँखें।

सुख-झलक ही देख लेने के लिए।

आज दिन हैं रात-दिन रहते खड़े।

बात हम अपने ललक की क्या कहें।

डालते हैं नित पलक के पाँवड़े।