Last modified on 20 मार्च 2014, at 18:36

देवभूमि / जयप्रकाश कर्दम

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:36, 20 मार्च 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जयप्रकाश कर्दम |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

देवों का शासन
देवों का सम्मान
देवों का अधिपत्य
छीनती है जनों से
जीने का अधिकार-देवभूमि
नहीं जीने देते शान्ति से जनों को
शांति के दूत
हिंसा करते हैं अहिंसा के पुजारी
सत्य है सिर्फ वही, जो
देखते, सुनते और बोलते हैं-देव
वे ही हैं आंख, कान और मुंह
इस देवभूमि के
समझते हैं जनों को दास
सर्वत्र पाखण्ड, प्रवंचना, प्रपंच
विभेद, विखण्डन
पीड़ा-प्रतारणा, उत्पीड़न
काम से अधिक बात बोलती है
मुंह से अधिक लात बोलती है
आदमी से अधिक जाति बोलती है
इस देवभूमि पर
देवों के लिए जाति एक गर्व है
सामाजिक पर्व है
लेकिन जनों को यह
घुन की तरह खाती है
जोंक की तरह चूंसती है
सर्प की तरह डसती है
जाति की गति आदमी से तेज होती है
जहां भी जाता है आदमी
उससे पहले पहुंचती है उसकी जाति
और रहती है अस्तित्व में
आदमी के न रहने पर भी
उसके नाम के साथ
इस देवभूमि पर।