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क्या गाऊँ / जयप्रकाश कर्दम

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साथी कह क्या गाऊं
छेड़ूं राग विकल हृदय के या मृदु गीत सुनाऊं।
आज भुला दूं मन का क्रंदन
झुठला दूं तन का स्पंदन
मधुर भूत को याद करूं या
तोड़ूं आज विषय के बंधन
या अपने प्रिय छगनमन से सपनों को बिसराऊं
साथी कह क्या गाऊं?

आज जला दूं अरमानों को
शून्य बना दूं सोपानों को
पीड़ा में आनंद मनाऊं
या भूलूं निज अवसानों को
या हृदय के हाय मोम से पत्थर को पिघलाऊं
साथी कह क्या गाऊं?

सांझ लगी यौवन की ढलने
निस्पृह जीवन लगा निगलने
निशि-वासर मन के अंतस में
आज लगा क्यों शून्य फैलने
कैसे मन के अंधकार में जगमग ज्योति जलाऊं
साथी कह क्या गाऊं?