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मधुर निशा / जयप्रकाश कर्दम

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वर्षों के सूने तन-मन में कोई राग जगा जा
आयी मधुर निशा तू आ जा।
कितने सावन व्यर्थ गंवाए
कितने यूं मधुमास बिताए
कितना झेला ताप विरह का
कैसे, कितने स्वप्न सजाए
अंतर की सूखी बगिया में कोई फूल खिला जा।
आयी मधुर निशा तू आ जा।

मस्त चकौरी आज गगन में
खेल रही चंदा के संग में
मैं भी झूमूं आज मगन हो
रंग रंग जाऊं तेरे रंग में
सूने मन में मधुर प्रेम की दुनियां एक बसा जा।
आयी मधुर निशा तू आ जा।

शीतल मंद पवन बहता है
चुपके-चुपके कुछ कहता है
मचल-मचल जाता है फिर मन
वश में नहीं आज रहता है
बनकर मेघ आज अंतर के नील गगन पर छा जा।
आयी मधुर निशा तू आ जा।