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यात्रा / मन्त्रेश्वर झा

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अनवरत चलि रहल अछि-यात्रा
क्यो भागल जा रहल अछि,
दौड़ि रहल अछि हँफैत, अपस्याँत
क्यो आपस आबि रहल अछि
मुँह लटकौने थाकल, हारल
क्यो ठाढ़ अछि कि बैसल
योजना बनबैत गनैत, समटैत
मुदा एकटा अनजान पथिक
निरन्तर चलि रहल अछि
आ चलैत चलैत पहुँचि गेल
अछि कोनो चौरस्ता पर
भोथिया गेल अछि गन्तव्य
अपन रास्ता
पुछैत अछि, चिकरैत अछि
क्यो बताउ हमर भाइ
जे हम कोन रास्तासँ आगू जाइ
ओही चौरस्ताक एक कात मे
शान्त बैसल एकटा वृद्ध
पुछलक पथिक के ”अहाँ के कतय
जैबाक अछि यात्री“
यात्री पड़ि जाइत अछि असमंजस मे
आख्यासय लगैत अछि
जे कतय जेबाक छैक ओकरा
जेबाक तऽ छलैक कतहु अवश्य
मुदा चलि पड़ल छल कोम्हरो आर
आ पहुँचि गेल छल कतहु अन्यत्र
कोनो अज्ञात स्थल
पथिक छल विकल
ताकय लागल निराश,
टुकुर टुकुर,
बाजय लागल हताश जे
”हम बिसरि गेल छी अपन गन्तव्य
हमरा अपनो पता नहि
जे हम जा रहल छी कतय।
हमरा एतबे मोन अछि हमर
सहृदय दादा भाइ
जे हमरा कतहु जेबाक अछि,
हमरो पहुँचबाक अछि कतहु ने कतहु अवश्य
वृद्ध ठठा कए हँसय लगैत अछि
फेरय लगैत अछि पथिकक माथ
सान्त्वना दैत ओकरा कहैछ,
कने सुस्ता लियऽ पथिक,
हम तऽ छी मूर्ख, हम की बताउ।
हँ एतबा तऽ बूझल अछि हमरा
हमर अनजान भाइ
जे पहिने चीन्हि लियऽ अहाँ अपनाके
तखने चिन्हायत गंतव्य
भेटत रास्ता अपने आप।
भीतर करू यात्रा बाउ।
तखने बढ़ाउ डेग
नहि तऽ पहुँचब नै कतहु पथिक
कतबो करब यात्रा।“