Last modified on 3 अप्रैल 2014, at 13:52

प्रियतमे! मैं नित रिनी तिहारौ / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:52, 3 अप्रैल 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

प्रियतमे! मैं नित रिनी तिहारौ।
तेरे प्रेमरसाबुधि के सीकर कौ मोय सहारौ॥
प्रेम-सुधा पावन अति तेरी, मो नित जीवन देत।
तन-मन-‌इंद्रियगन की ज्वाला सब छिन-छिन हरि लेत॥
हौं तेरे अति बिमल प्रेम के हूँ सर्बथा अजोग।
तू उदार-चूड़ामनि निज दिसि देखि देय संजोग॥
तू अनन्य, हौं घर-घर डोलौं, मेरौ प्रेम अपावन।
तौहू तू मेरी आराध्या, करत रहत मोहि पावन॥
तेरौ प्रेम सदा ही निर्मल, नित्य परम सुख-मूल।
तू नित ही अति छमा-परायन, नित्य करौं मैं भूल॥
मत मेरी दिसि कबौं देखियो, नित अनुकंपा रखियौ।
अपने पावन पद-कमलनि महँ मोय निरंतर लखियौ॥