Last modified on 5 अप्रैल 2014, at 00:50

मिले नेत्र नेत्रों में जाकर / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:50, 5 अप्रैल 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मिले नेत्र नेत्रों में जाकर, श्रवण मिले श्रवणों में सत्य।
मिलीं अन्य इन्द्रिय सारी प्रियके इन्द्रिय-समूह में नित्य॥
हृदय हृदयमें मिला, समाये प्राण सदा प्रियतम के प्राण।
एकरूप हो गये, रहा रंचक भी नहीं भिन्नता-भान॥
किसको कौन समर्पित, किसमें कौन हु‌आ कब कैसे लीन।
प्रियतम है या प्यारी, कौन बताये यह सुधि-बुधिसे हीन॥