Last modified on 21 अप्रैल 2014, at 08:39

लेखा / गुरप्रीत

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:39, 21 अप्रैल 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुरप्रीत |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मैंने सब का,
कुछ न कुछ देना है
देना यह मुझसे,
कैसे भी दिया नहीं जाएगा
मेरे आते जाते सांस,
घूमती धरती के साथ घूमते हैं,
चमकते सूरज के साथ चमकते हैं
मेरे पास, तुम्हारे पास भाषा है
मैं धन्यवाद कह कर मुक्त हो सकता हूँ
नदी, पहाड़, जंगल, मैदान, पंछियो के लिए
मैं कौन सा ढंग चुनूँ...