भूल कर भी नही कहा तुमने
कि याद करते हुए
लिखते हो तुम
कोई उदास कविता
न ही कह पाई मैं कि जब भी
याद आते हो
एक टीस सी होती है
खुरचती हूँ आँगन की
मिटटी उकेरती हूँ
एक जोड़ी आँख
और डर कर मूँद लेती हूँ पलके
समय लाता है हर रोज
मेरे बिस्तर पर एक
अँधेरी रात... सलवटों से सवाल
तुम्हारी बहुत पहले दी
उन लाल प्लास्टिक की
चूड़ियों की परिधि में
घूमती है मेरी कलाई
और अतीत खनक जाता है...