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सीता / कालीकान्त झा ‘बूच’

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जे अयलीह स्वतः हरवाहक
बेटी बनलि भुवन मे
रहि सकतथि से कोना हुलसि क'
अवधक राज भवन मे
धनुष यज्ञ तँ एक प्रदर्शन
राजा लोकनिक रेला
तपसिन केँ तापसक प्रयोजन
ओ छल क्षुद्रक मेला
नहि चाही ई भोग भवन आ
नहि चाही नंदनवन
नहि चाही ई भाजक यौवन
चाही योगक जीवन
सिंहद्वारि सिसकैत रहलि हा
कलपि कलपि कौशल्या
रुकतथि कोना हँकारि रहलछनि
एखनो बहुत अहिल्या
पितृप्राण पर ध्यान रहल नहि
भूत्राणक आकुलता
सुखसेजक पजरैत चिता सं
भागी ई व्याकुलता
आगू आगू ब्रह्म चलल
पाछू वैराग्यक जोड़ी
ताहि बीच सीता हुलसलि
भक्तिक ई नवकी डोरी
पुत्रवधू हा ! पुत्रि सुसीते
हा!हा! राम सिनेही
कयलनि पूर्ण प्रेम प्रतिपालन
देह त्यागि क' देही
जल निरपेक्ष कमल दल लोचन
कर्तव्यक छल ज्वाला
कनितथि कोना ह्रदय पर राखल
तापस पाहन शाला
धन्य पिता हे धन्य पुत्र तोँ
धन्य तोर ई गीता
मुदा धन्य सभ सं बेसी छथि
एक गरीविन सीता
जग प्रसिद्द जोगीक दुलारी
तिरहुत राजकुमारी
सूर्यवंश कुलबधू आइ
तजि देलनि अपन घरारी
ल' असीम आनंद ह्रदय मे
अनुकम्पा आनन मे
पतिक संग चलि देलि विहँसि क'
जगदम्बा कानन मे
रोकि देला पर रुकितथि नहि की
रघुपति वरु ब्रतधारी
एक ईशारा पर माया-मृग
पर जे भेला शिकारी
सीता केर छल से अभिष्ट नहि
ओ छलि माँटिक बेटी
माँटिक लेल मेटा क' अपने
रखलनि त्यागक घेंटी
रामो पौलनि राज माए सुत
पिता सुगति सुख भोगी
मुदा बनल रहि गेल जानकी
जीवन परम वियोगी
सोना सन सुकुमारि सिया केँ
सहलहुँ देखि अनल मे
मुदा सहब ई कोना कहू
ओ डूबय ग्लानि गरल मे
समुचित सन उत्तरक काण्ड पर
रहल ने किछु जिज्ञाशा
मुदा एक सीताक लेल
ताहू ठां एक निराशा
हे पाहुन हम आब सुनायब
अन्तक ई उपरागो
कानि रहल छथि सासु सुनयना
सिसकल ससुरक रागो
सून भेल मिथिलाक घ'र तँ
अवधक अंगनो बसितय
कानि रहल जौं एत' सारिका
शुको ओत' तँ हंसितय