ऊपर तुम, नंदा!
नीचे तरु-रेखा से
मिलती हरियाली पर
बिखरे रेवड़ को
दुलार से टेरती-सी
गड़रिए की बाँसुरी की तान:
और भी नीचे
कट गिरे वन की चिरी पट्टियों के बीच से
नए खनि-यंत्र की
भठ्ठी से उठे धुएँ का फंदा।
नदी की घेरती-सी वत्सल कुहनी के मोड़ में
सिहरते-लहरते शिशु धान।
चलता ही जाता है यह
अंतहीन, अन-सुलझ
गोरख-धंधा!
दूर, ऊपर तुम, नंदा!