मोर के चंदन मोर बन्यौ दिन दूलह हे अली नंद को नंद।
श्री कृषयानुसुता दुलही दिन जोरी बनी विधवा सुखकंदन।
आवै कहयो न कुछु रसखानि री दोऊ फंदे छवि प्रेम के फंदन।
जाहि बिलोकैं सबै सुख पावत ये ब्रज जीवन हैं दुख ढ़ंढन।
मोर के चंदन मोर बन्यौ दिन दूलह हे अली नंद को नंद।
श्री कृषयानुसुता दुलही दिन जोरी बनी विधवा सुखकंदन।
आवै कहयो न कुछु रसखानि री दोऊ फंदे छवि प्रेम के फंदन।
जाहि बिलोकैं सबै सुख पावत ये ब्रज जीवन हैं दुख ढ़ंढन।