Last modified on 2 जून 2014, at 00:04

लेल्योजी लेल्योजी थे / भजन

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:04, 2 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKDharmikRachna}} {{KKCatBhajan}} <poem> लेल्योजी लेल्योजी थे, लेल्यो ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अष्टक   ♦   आरतियाँ   ♦   चालीसा   ♦   भजन   ♦   प्रार्थनाएँ   ♦   श्लोक

लेल्योजी लेल्योजी थे, लेल्यो हरि को नाम॥
मैं व्योपारी राम-नाम का, प्रेमनगर है गाम॥टेर॥
मैं प्रेमनगर से आया, हरि नाम का सौदा ल्याया॥
च्यार खूँट में चली दलाली, आढ़त चारुँ धाम॥१॥
सोना-चाँदी कछु नहीं लेता, माल मोफत में ऐसे ही देता।
नाम हरि अनमोल रतन है, कौड़ी लगे न दाम॥२॥
बाट तराजू कछु नहीं भाई, मोलतोल उसका कछु नाहीं।
करल्यो सौदा सत-संगत का, टोटे का नहीं काम॥३॥
राम-नामका खुल्या खजान, कूद पड्या नर चतुर सुजान।
सुगरा-सेन तुरत पहिचाने, नुगरे का नहीं काम॥४॥
पाँचु की परतीत न कीजे, नाम हरि का निर्भय लीजे।
मगन होय हरिके गुन गावो, भजल्यो सीताराम॥५॥
सस्ता माल नफा है भारी, सहस्त्रगुनी देव साहूकारी।
करल्यो सुरता राम भजन में, मिल जाय राधेश्याम॥६॥
नाम हरि अनमोल रतन है, सब धन से यह ऊँचा धन है।
कह गिरधारीलाल और धन, मिथ्या जान तमाम॥७॥