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इक़बाल / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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आया हमारे देस में इक ख़ुशनवा फ़कीर
आया और अपनी धुन में ग़ज़लख़वां गुज़र गया
सुनसान राहें ख़ल्क से आबाद हो गईं
वीरान मयकदों का नसीबा संवर गया
थीं चन्द ही निगाहें जो उस तक पहुंच सकीं
पर उसका गीत सबके दिलों में उतर गया

अब दूर जा चुका है वो शाहे-गदानुमा
और फिर से अपने देस की राहें उदास हैं
चन्द इक को याद है कोई उसकी अदा-ए-ख़ास
दो इक निगाहें चन्द अज़ीज़ों के पास हैं
पर उसका गीत सबके दिलों में मुकीम है
और उसकी लय से सैंकड़ों लज़्ज़तशनास हैं

इस गीत के तमाम महासिन हैं ला-ज़वाल
इसका वफ़ूर, इसका ख़रोश इसका सोज़ो-साज़
ये गीत मिसले-शोला-ए-जव्वाल: तुन्दो-तेज़
इसकी लपक से बादे-फ़ना का जिगर गुदाज़
जैसे चिराग़ वहशते-सरसर से बे-ख़तर
या शमए-बज़म सुबह की आमद से बे-ख़बर