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बातें / सुलोचना वर्मा

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जीवन की आपाधापी में
रुकने की इज़ाज़त नही
चले जा रहे हैं
और मंज़िल कोई नही
घर से गाड़ी में निकलकर
किसी ट्रेफिक सिग्नल पर रुकी
और शामिल हो गयी
चीटियो की कतार सी दिखती
गाड़ियों की लाइन में
माथे की लकीरों में
उभर कर आ रहा है
घर के खर्चे का हिसाब
दफ़्तर की फाइलें
और उनके निपटाने का रिपोर्ट
बच्चे की ज़िद, पति की बात
भूले बिछड़े दोस्तों की याद
बारिश का मौसम
और पकौड़े का साथ
टमाटर और पुदीने की चटनी
हरिया के दुकान की ईमली
याद आती हैं वो चखदार बातें
और इतने में
सिग्नल का ग्रीन हो जाना

कुछ छोटी छोटी बातें
जिनसे बनी है मेरी ज़िंदगी
और वो तमाम यादें
जिनसे जीवन में रंग भरा
बातें हक की, अभिमान की
स्त्रीत्व की, स्वाभिमान की
दूसरों की जगह पर
खुदको रखकर
परिस्थिति तौलने की

अपने वर्चस्व की
और उन तमाम अनुभवों की
जो घर से दफ़्तर
और दफ़्तर से घर
आते जाते मुझे मुझसे मिलाते हैं