Last modified on 14 जून 2014, at 06:54

रिश्ता / सुलोचना वर्मा

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:54, 14 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुलोचना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मैं ध्वनि, तो तुम लय हो
मैं जीवन, तो तुम भय हो
मैं तिश्नगी, तो तुम मय हो
मैं नींद, तो तुम शय हो

मैं वृद्धि, तो तुम वय हो
मैं युद्ध, तो तुम जय हो
मैं वाणिज्य, तो तुम क्रय हो
मैं मेहनत, तो तुम प्रय हो

आज ज़िंदगी बेसुरी सी हो चली
हर आहट से काँप जाती हूँ
इक प्यास है, बुझती ही नही
नींद में हलचल भाँप जाती हूँ

गुज़रा जमाना ठहर सा गया है
रिश्ता ये जंग हार चला है
मिल सकती हैं अब भी राहें
फिर सोचूँ कि प्यार बला है