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राष्ट्रगीत / महावीर प्रसाद ‘मधुप’

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भारत माता के बेटो! आज़ादी के रखवालो!
देश पतन की ओर जा रहा मिल कर इसे संभालो॥

विषमय वातावरण, परीक्षा की यह विषम घड़ी है
कठिन समस्याओं की मग रोके दीवार खड़ी है
प्रेम एकता की उजड़ी जाती पावन फुलवारी
और प्रगति के पैरों में कब से ज़जीर पड़ी है
मातृ भूमि को खंड-खंड होने से आज बचा लो।
देश पतन की ओर जा रहा मिल कर इसे संभालो॥

चौतरफा फेली कलुषित आतंकवाद की छाया
दुर्बलता से ग्रस्त हुई है लोकतंत्र की काया
घोंट दिया है देशभक्ति का गला स्वार्थपरती ने
पद लोलुपता ने कर्त्तव्यों का सद्भाव मिटाया
पड़े कष्ट सहना कितना भी बिगड़ी बात बना लो।
देश पतन की ओर जा रहा मिल कर इसे संभालो॥

सीमाओं पर शत्रु वाहिनी बैठी आँख लगाये
नन्दन वन की सुन्दरता पर मन उसका ललचाये
हम प्रहरी हैं इस उपवन के यह न स्वप्न में भूलो
सावधान! अपनी प्रभुता को आँच न आने पाये
राष्ट्र समुन्नत रहे सदा बस लक्ष्य यही अपना लो।
देश पतन की ओर जा रहा मिल कर इसे संभालो॥

पहुँच नहीं पाया कुटियों में सुख का अभी उजाला
कदम-कदम पर धधक रही है देशद्रोह की ज्वाला
हम आपस के वाद विवादों में रह गए उलझकर
टूट-टूट कर बिखर रही है स्नेह-सुमन की माला
पथ को मंज़िल मान रुको मत आगे पाँव बढ़ा लो।
देश पतन की ओर जा रहा मिल कर इसे संभालो॥