शहर की हवाओं में
कैसी आवाज़ें हैं
लगता है
गाँवों में कोयलिया बोली
नीलापन हँसता है
तारों में
फँसता है
गगन की घटाओं में
कैसी रचनाएँ हैं
लगता है
धरती पर फगुनाई होली
सड़कों पर नीम झरी
मौसम की
उड़ी परी
धरती के आँचल में
हरियल मनुहारें हैं
लगता है
यादों ने कोई गाँठ खोली