Last modified on 4 जुलाई 2014, at 14:34

कद / अंजू शर्मा

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:34, 4 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अंजू शर्मा |अनुवादक= |संग्रह=कल्प...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बौनों के देश में
सच के कद को बर्दाश्त करना
सबसे बड़ा अपराध था,
प्रतिमाओं को खंडित कर कद
को छोटा करना ही
राष्ट्रीय धर्म था,

कालातीत होना ही नियति थी
ऐसी सब ऊँचाइयों की
जो अहसास दिलाती थी
कि वे बौने हैं,
हर लकीर के बगल में जब
भी खींची जानी चाहिए थी
कोई बड़ी लकीर,
पुरानी को मिटा देना ही
फैशन माना जाने लगा,

छिद्रान्वेषण एक दिन राष्ट्रीय खेल
घोषित किया गया,
तब आहत संवेदनाओं में धंसाई गई
किरचों के लिए
पाए गए तमगे ही असली कद
माने जाने लगे
बंद किये जाते सभी झरोंखों के
बीच एक दिन
दम तोड़ गयी गुनगुनाने वाली
सभी गोरैय्याँ
जो गले में थामे चरित्र के प्रमाणपत्रों की तख्ती
अभिशप्त थी बदलने को
 अशब्द गूंगे पत्थरों में,
जिनकी हर उड़ान पर ट्रिम होते
सफ़ेद पंखों पर पोत दी जाती थी
आरोपों की कालिख,

प्रायोजित बैठकें भी बेकार ही रहीं
काफी हाऊसों की गरमागरम बहसों की तरह
और इससे पहले कि
पहुंचा जाता किसी फैसलेकुन नतीजे पर
क्रांति और बदलाव के बिगुल बदल
दिए गए स्वहित में की गयी घोषणाओं में
क्योंकि बौनों के सरदार
के मुताबिक 'ऊँचे स्वरों' की ऊंचाई
वहां सदैव निषिद्ध थी...