अपनी माँ का नाम मैंने कभी नहीं सुना
लोग कहते हैं
फलाने की माँ, फलाने की पत्नी और
फलाने की बहू
एक नेक औरत थी,
किसी को नहीं पता
माँ की आवाज़ कैसी थी,
मेरे ननिहाल के कुछ लोग कहते हैं
माँ बहुत अच्छा गाती थी,
माँ की गुनगुनाहट ने कभी भी
नहीं लाँघी थी
रसोई की ड्योढ़ी,
बर्तन जानते थे माँ की आवाज़
चाय को कितना मीठा करती होगी,
माँ की दस्तकारियाँ आज भी अधूरी हैं,
अधूरे रह गए हैं सारे रिश्ते,
अपनी नेकनामी के भार तले दबी हुई माँ
छोड़ गयी
अधूरी सांसे, अधूरी दस्तकारियाँ और अधूरे रिश्ते,
कभी कभी मैं सोचती हूँ
'नेक' बनने की कीमत चुकाने के लिए
अधूरा होना क्या पहली शर्त होती है...