आपको
शायद ये गैरजरूरी लगे,
आलोचनाओं के
निर्दयी हथौड़ों
के प्रति
अक्सर
व्यक्त करती हूँ
आभार,
देती हूँ धन्यवाद,
सहेजती हूँ
चोटिल शब्द,
सहलाती हूँ
छलनी स्वाभिमान,
संजोती हूँ मनोबल,
रिसते घावों से
पाती हूँ रोशनाई,
मानती हूँ ऐसे मौकों पर
मेरा फिर से
खड़े हो जाना ही,
दुनिया का
सबसे जरूरी काम है...