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बारहमासा / भिखारी ठाकुर

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आवेला आसाढ़ मास, लागेला अधिक आस,
बरखा में पिया रहितन पासवा बटोहिया।

पिया अइतन बुनिया में,राखि लिहतन दुनिया में,
अखरेला अधिका सवनवाँ बटोहिया।

आई जब मास भादों, सभे खेली दही-कादो,
कृस्न के जनम बीती असहीं बटोहिया।

आसिन महीनवाँ के, कड़ा घाम दिनवाँ के,
लूकवा समानवाँ बुझाला हो बटोहिया।

कातिक के मासवा में, पियऊ का फाँसवा में,
हाड़ में से रसवा चुअत बा बटोहिया।

अगहन- पूस मासे, दुख कहीं केकरा से?
बनवाँ सरिस बा भवनवाँ बटोहिया।

मास आई बाघवा, कँपावे लागी माघवा,
त हाड़वा में जाड़वा समाई हो बटोहिया।

पलंग बा सूनवाँ, का कइली अयगुनवाँ से,
भारी ह महिनवाँ फगुनवाँ बटोहिया।

अबीर के घोरि-घोरि, सब लोग खेली होरी,
रँगवा में भँगवा परल हो बटोहिया।

कोइलि के मीठी बोली, लागेला करेजे गोली,
पिया बिनु भावे ना चइतवा बटोहिया।

चढ़ी बइसाख जब, लगन पहुँची तब,
जेठवा दबाई हमें हेठवा बटोहिया।

मंगल करी कलोल, घरे-घरे बाजी ढोल,
कहत ‘भिखारी’ खोजऽ पिया के बटोहिया।