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सीस तेरे चीरा हरियाले बन्ने पेची अजब बहार / हरियाणवी

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सीस तेरे चीरा हरियाले बन्ने पेची अजब बहार
काम तेरे मोती बन्ने चुन्नी अजब बहार
किसियो पोता ब्याहिये किसिये चढ़ा दहेज
स्याम नन्द विवाहिये जुन पूनो का चांद दिल्ली का सुल्तान
ब्याह बहू ले आइये हरियाले बन्ने उतरो राज द्वार
बहू उतारो ओबरे सोभा यह धमसाल
सोभा का क्या देखना जो बहू कुल की होय
जो मन मेलू होय
सास बहू जब लड़ पड़ी बन्ना किस की ओर
बाहर से भीतर गया हुआ बहू की ओर
एक दिना एक रात में जाय सराही ससुराल
नौ दस मास गरभ में बीते तब न सराही माय
आधा सोभा बांट दे जाय बसूं ससुराल
जब तैं रोया बन्ने खड़ी डुलाऊं थी सारी रात
सूखे तुझे सुलावती गीले रहती सोय रे हरियाले बन्ने
जो मैं ऐसा जानती क्यों रखती तेरी आस
तू क्या पाला सेंत में मेरी अम्मां तूने ठगा मेरा बाप
हमीं बिना आदर नहीं बापू जी ने दी बिसराय
हमीं हुए आदर हुआ पीहर से ली बुलाय
गडुवा से लडवा खाये खाई चरपरी सौंठ अर करकरा गौंद
मूंग चावल की खीचड़ी मेरी भोली अम्मा सुरही गऊ का घीय
कोने घुस घुस खावती
हम से एक जो गस्सा गिर पड़ा मेरी भोली अम्मां
नानी सी मर जाय बन्दर सी गुरराय मेरी भोली अम्मा