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हे निरभ्र आकाश! / यात्री

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हे निरभ्र आकाश!
हें भारल आकाश!
हे धीपल आकाश!
हे तानल आकाश!
हे तमसाएल आकाश!
कोना क’ जुड़ेतइन अभागलि पृथ्वीक कोखि?
कहिआ धरि पूर्ण हेतइ झरकल दूबिक मनोरथ?
हजार नाँगट गाछ यत्र तत्र ठाढ़
कार कउआक कर्कश स्वरमेँ
चिचिआ उठतहु मने अइखन।
"कतए नुकओने छह अपन ओ तरल अमृतधन"
"कतए नुकओने छह ओ सृष्टिक संजीवनी रसायन"
हमरा सभ ओहिना नहि नष्ट होएब
तोरहि नामेँ करैत जाएब आत्मदाह
एकक पछाति दोसर
तकरा बाद तेसर, तदुपरान्त चारिम
तत्पशचात् पाँचम
एही क्रमें हजारक हजार
आत्मदाह करैत जाएब हमरा सभ
हमरा सभक चिताधू क’ देतहु तोरा अकच्छ
पहुँचि अन्तरिक्षमेँ भ’ जेतहु प्रलयंकर मेध
प्रचंड़ धनघटाक ओ दुर्वान्ति झोंप महाझोंप
क देतहु तोहर दर्पकेँ चूर्ण विचूर्ण
की क’ लेबहक आकर?
तोहर एहि दंभपर खसहु बस बज्र तोँ जाह बरू निखत्तर
हे निरभ्र आकाश!
????धूसर आकाश!
हे धीपल आकाश!
हे भारल आकाश!
हे तानल आकाश!
हे तमसाएल आकाश!