समुद्रक कछारमेँ
सितुआक पीठपर
तरंगित रेखाक बहुरंगो अइपन, हल्लुक।
ऊपर - अउन्हल आकाश
निबिड़ - नील।
नीचाँ श्याम सलिल वारूणी सृष्टि।
सभी किच्छु बिसरि
तिरोहित कए सभ किच्छु
-अवचेतन मध्य
रहताह ठाढ़ मनुपुत्र, दिगम्बर
ने जानि कती काल....
पश्चिमाभिमुख।