Last modified on 21 जुलाई 2014, at 15:27

छीछाल्यादरि / पढ़ीस

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:27, 21 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पढ़ीस |संग्रह=चकल्लस / पढ़ीस }} {{KKCatKavi...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तुम घूरि-घूरि हमका द्याखउ, यह छीछाल्यादरि द्याखउ तउ!
हम तुका, द्याखति धरि खायी, यह छीछाल्यादरि द्याखउ तउ।
तुम ल्यहँगा लखतयि लाल परउ, लंबे लटकन<ref>होठों को स्पर्श करते हुए नाकमें पहना जाने वाला गहना</ref> की कउनि कही,
हम सूटू-बूटु से जरि जायी, छीछाल्यादरि द्याखउ तउ।
तुम पूरि प्वँगहरा<ref>पूरी टाँग</ref> नोचि-नोचि, फिरि पानी पियउ बरण्डी<ref>ब्राण्डी-रशे का पेय-बिलायती शराब</ref> का,
हम हन गुरूमुख, कंठी बाँधे यह छीछाल्यादरि द्याखउ तउ।
तुम जंटर मैनी मेम चहउ, जो चटर-पटर तुमते ब्वालयि,
हम काढ़ी घुँघटु ड्यढ़हत्था, यह छीछाल्यादरि द्याखउ तउ।
होटल की नचुई देखि-देखि, तुमका नचनची सवार होयि,
हम मनई देखि भरकि भाजी, यह छीछाल्यादरि द्याखउ तउ।
हम गजल-पचासा गायी, तब तुम टुन-टुन करउ पियानू<ref>वाद्य यन्त्र प्यानों</ref> पर,
यह अँधरा-बहिरा केरि द्यवाई, यह छीछाल्यादरि द्याखउ तउ।
तुम देसी देखे खारू खाउ, हम परदेसी पर उकिलायी,
यहु कस दुलहा? यह कसि दुलहिनि? सबु छीछाल्यादरि द्याखउ तउ॥

शब्दार्थ
<references/>