सृष्टि के प्रारंभ से
आज तक
एक प्रजाति
है गिरमिटिया...!
समाज के सब
कायदे-कानून
रस्में रवायतें
हैं दमनकारी
उसके प्रति...!
बिना किसी सदस्यता प्रपत्र,
बनी हुई है वह गिरमिट
एक अनंत अवधि के लिए ...
स्वामी समुदाय पुरुष का है
गिरमिटिया नारी जाति का..
लिखा पुरुष ने गिरमिट में
अपनी सशक्त भुजाओं से
दलन सहस्र विधाओं से,
फिर ली गई छाप अस्तित्व की
अँगूठे का काम न था...।
लिखवा लीं उसकी
मुस्कानें, सब उमंग और
सब की सब
वैचारिक उड़ानें...
पर
सीख गई अब गिरमिटिया
पढ़ना वह सारे अक्षर
जो लिखे हुए हैं
आँखों में,
लिखे दंभी मुस्कानों में,
लिखे सशक्त भुजाओं में...
अब बैठी है तैयार वह
फाड़ डालने को गिरमिट
लेने को अपनी अमानतें
अपनी छिनी हुई मुस्कानें,
कुचला हुआ आत्म सम्मान,
रौंदा हुआ आत्म विश्वास...
नहीं रहेगी गिरमिटिया..!
अब नहीं रहेगी गिरमिटिया...!!