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जीवन-सार / अनिता ललित

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प्रेम की बेड़ियाँ...
फूलों का हार,
विरह के अश्रु...
गंगा की धार ,
समझे जो वेदना... प्रिय के मन की
योग यही जीवन का... है यही सार!