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पंचपदी / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

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मर्कटकेर हाथ घड़ल मोतीकेर माल,
नढ़या सबओढ़ि लेलक सिंह केर खाल,
भिन्न- भिन्न राग सभक, भिन्न-भिन्न ताल,
लोकतन्त्रकेर भेल हाल तेँ बेहाल,
बान्हि राखि देल गेल जखन संविधान
तखन बचत देश कोना, कहत के ठेकान॥
भेटिजाय भोट ताहि हेतु महाजाल
रहल सब फेकैत अपन बजा-बजा गाल,
रोगग्रस्त होइत गेल देश ई बिशाल,
कृषक श्रमिक केर भेल जीवनो जपाल,
प्रतिनिधि जँ बेचि लेथि धर्म आ इमान
तखन बचत देश कोना, कहत के ठेकान॥
बाँटि देल गेल जाति-पाँतिमे समाज,
घोँटि-घाँटि पीबि गेल लोक लोक-लाज
रक्षके करैछ हाय! भक्षकोक काज,
डूबि जाय ने कदाच चप्प दऽ जहाज,
केवल कुर्सीक हेतु मचय घमासान,
तखन बचत देश कोना, कहते के ठेकान॥
हमही छी त्राता, सब ढकिते रहि गेल,
हमही उद्धार करब, बकिते रहि गेल,
लोक आँखि गाड़ि बाट तकिते रहि गेल,
किन्तु बेर-बेर आबि ठकिते रहि गेल,
जैह रहय अप्पन सैह भेल आन
तखन बचत देश कोना, कहते के ठेकान॥
गाम थीक एहि देशकेर मेरूदण्ड,
देखि से पड़ैछ आइ भेल नण्ड-भण्ड,
मुसरी धरि घर-घरमे घीचि रहल दण्ड,
नेतृवर्गकेर गेल बढ़िते पाखण्ड,
कुहरि कुहरि काल काटि रहल जँ किसान,
तखन बचत देश कोना, कहत के ठेकान॥