Last modified on 11 अगस्त 2014, at 15:11

चाहे जितनी दूर जाऊँ / रणजीत साहा / सुभाष मुखोपाध्याय

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:11, 11 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुभाष मुखोपाध्याय |अनुवादक=रणजी...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मैं चाहे जितनी भी दूर जाऊँ
मेरे संग चला आता है
लहरों की माला गुँथी
एक नदी का नाम-
मैं चाहे जितनी भी दूर जाऊँ।

मेरी आँखों की पलकों के
लिपे-पुते आँगन में चले आते हैं
अनगिनत क़तारों में
लक्ष्मी के पाँव।

मैं चाहे जितनी भी दूर जाऊँ