दुर्जन धन पद पायकर भूल जाय करतार।
नित उन्नति धन पद करै नहिं सूझै परिवार।।
नहिं सूझै परिवार आँख में धुंध समाई।
चलै धर्म मग त्याग नित जग में होत हँसाई।।
कहैं रहमान स्वर्ग ईश्वर घर पावहिं दानी सज्जन।
नरक वास पावैं जबहिं खुलहिं नेत्र तब दुर्जन।।