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ओकील / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

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1
ओकील हाय! मोकील बिना
कोकिलक संग छी कूकि रहल।
चातक बनि स्वाती बुन्द टका पर
ध्यान गाड़ि, छी झूकि रहल॥
2
पण्डित बनि साधै धर्म जगत
हम छी विरूद्ध केँ साधि रहल।
हम अपन समाजक गर्दनि चढ़ि
शासनक बीच छी व्याधि बनल॥
3
हम मूस जकाँ घर फोड़ि, अपन-
स्वार्थक संसार बसा लई छी।
हम बड़की अन्हरी बाझहुँ केँ
चाङुर मे आनि फँसा लइ जी॥
4
अपना पक्षक हेतुएँ अपन
गर्दनि धरि रखन आँट रही।
अपनो मन में अनुभव होइछ
जहिना समाज मे काँट रही॥
5
जीवन तथापि अछि भार बनल
अगवे माछी छी मारि रहल।
तइओ ई धन्य समाजे अछि
जे कहुना समय संसारि रहल॥