Last modified on 19 सितम्बर 2014, at 23:13

चाबी / संतोष कुमार चतुर्वेदी

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:13, 19 सितम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संतोष कुमार चतुर्वेदी |अनुवादक= |...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बंद मत हो जाना किसी ताले की तरह
लटक मत जना कभी किसी कुंडी से जकड़ कर
क्योंकि सुरक्षित नहीं होता कभी कुछ भी
इस दुनिया में

क्योंकि समय किसी खरगोश की तरह
कुलाँचें भरता चला जाता है
दूर... ...बहुत दूर
क्योंकि ओस की बूँद सब छोड़ छाड़ कर
चल पड़ती है धूप के साथ एक हो कर

होना तो
एक चाबी की तरह होना
खोलना
बंद पड़े दिलो दिमाग को
चले जाना किसी भी सफर पर
लोगों के साथ सहज ही
घूम आना
मेज, खूँटी, जेब, झोले, पर्स, रूमाल
या फिर आँचल के खूँट के प्रदेश से

तुम जब कभी अलोत होओ
लोग याद करें तुम्हें शिद्दत से
खोजें पागलों की तरह तुम्हें
हर जगह हर ठिकाने पर

जरूरत बन जाओ इस तरह
कि लोग रखें तुम्हें सहेज कर
और जब कभी तुम गुम हो जाओ
लोग परेशान हो जाय बेइंतहा
तुम्हारी याद में

लोगों को तैयार करानी पड़े
ठीक तुम्हारे ही जैसी शक्लोसूरत
ठीक तुम्हारे ही जैसी काया