Last modified on 28 सितम्बर 2014, at 18:51

सअनंत प्रेम / अनुज लुगुन

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:51, 28 सितम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनुज लुगुन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मेरी बाँहें आसमान को समेटे हुए हैं
मेरा जिस्म जमीन में गहराई से धँसा है
मुझसे लिपटी हुई हैं
नदी, पहाड़ और पेड़ की शाखें
मृत्यु से पहले तक
अनंत की संभावनाओं के पार
मैंने असीम प्रेम किया है,
अपनी भाषा की तमाम संज्ञाओं के सामने हारते हुए
अंततः मैंने उसे एक नाम दिया था - 'मिट्टी'
उसने भरे थे मेरे जीवन में अनगिनत रंग
सर पर आसमान
और देह पर पहाड़ लिए
वह उतना ही उर्वर और पवित्र था
जितना कि प्रेम
मैंने आत्मा की जमीन को
हमेशा पूजा के होंठ से चूमा है,
ओह!
मेरी आदिम प्यास!
तुमसे लिपटी हुई मेरी नाड़ियों को काटकर
अलग किया जा रहा है
बाँध दी गई हैं अनगिनत जंजीरें
उगते लालमयी सूरज की ओर
उम्मीद कर देखना भी कानूनी प्रतिबंध कर दिया गया है
फिर भी
मैं तुमसे प्रेम करता हूँ
प्रेम अपने आप में विद्रोह होता है
और मैं लगातार तुमसे प्रेम कर रहा हूँ,
हर रोज
हर मोड़ पर
हर दस्तक पर
खोई हुई यह दुनिया जब पहचान माँगती है
मैं तुमसे प्रेम करता हूँ,
ओ मेरे पुरखों की विरासत!
मृत्यु से पहले तक
अनंत की संभावनाओं के पार
मेरे पुरखों ने अदैहिक प्रेम किया है
ओ मेरे पुरखों की प्रियतमा मेरी माँ !
ओ मेरी प्रियतमा मेरे बच्चों की माँ !
मृत्यु की तमाम संभावनाओं के सामने
मैं तुमसे असीम प्रेम करता हूँ।
सुनो जंगल
मैं पंछी तुम्हारी डाल का
तुम्हें एक पेड़ की तरह
प्यार करता हूँ
उसमें घोंसला बनाता हूँ
मेरा घर तुम्हारी कोख में है और
तुम्हारे प्यार के तिनकों से
बुना है मेरा घर
तुम्हारी कोख में मेरा प्यार भरा
स्पर्श और चुंबन है
हमने बनाई है हमेशा इसी तरह
प्यार भरी एक दुनिया,
ओ मेरे जंगल!
ओ मेरी अनन्य!
आलिंगनबद्ध हैं हम
तुम मुझे देती हो जीवन
और मैं तुम्हें समर्पण।