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पर्दा / रश्मि रेखा

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चीजें मुक़म्मल हो ज़रूरी नहीं
ज़रूरी है उन्हें दिखना बेहतर
तब ज़रूरत पड़ती है पर्दे की
दरअसल चीजों को बेपर्द होने से
बचाने की कला का नाम है पर्दा
तमाम उम्र बड़ी होशियारी से
हम करते है जिसका इस्तेमाल
जीने के लिए

यह और बात है कभी-कभी
हमारी अक्ल पर पड़ जाता है पर्दा
कभी बेवक्त भी गिर जाता है पर्दा

पर्दे के बाहर कितनी बड़ी है दुनिया
पर्दे के भीतर भी कहाँ इतनी छोटी
अक्सर आव़ाज के पर्दे में
छिपे होते है हमारे खामोश जज्वात
कभी सात पर्दे के भीतर हम पाते है
ख़ुद को बेपर्दा
यह अंदाजे बयाँ का पर्दा ही है
जो एक शायर को बना देता है सुख़नवर

भाषा के पर्दे में रहते है शब्द
शब्दों के पर्दे में छिपे सारे अर्थ
अर्थ के पर्दे में किसिम-किसिम के इरादे
सात पर्दे की ओट में ही तो रहती है मिनर्वा

सारे पर्दे हटा दो तो देख नहीं सकती आँखें