Last modified on 30 सितम्बर 2014, at 17:55

हालात / रश्मि रेखा

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:55, 30 सितम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रश्मि रेखा |अनुवादक= |संग्रह=सीढ़...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

संभावनाओं की नदी में डुबकियाँ लगाते
खुदाई से निकले जमाने की तरह
कितना कुछ अनिश्चित है जैसे
ये हालात और ये रफ़्तार
मौत भी अब कहाँ रही पहले वाली मौत
सुबह भी नहीं रही अब पहले वाली सुबह
इतनी ज्यादा ठोकरें फिर भी
मैं क्यों नहीं हो पाई सुर्खरू
शताब्दियों का दर्द समेटे
कई-कई जुबानों में हकला रही थी पीड़ा
याद आया ग़ालिब का वह मिसरा
'शम'अ हर रंग में जलती है सहर होने तक