Last modified on 16 अक्टूबर 2014, at 07:19

गंगा / नज़ीर बनारसी

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:19, 16 अक्टूबर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नज़ीर बनारसी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

गंगा का है लड़कपन गंगा की है जवानी
इतरा रही है लहरें शरमा रहा है पानी

दोहराए जा रही है हर मौज की रवानी
बीते हुए ज़माने गुज़री हुई कहानी

रूक-रूक के चल रही है बरसात की कहानी
थम-थम के बढ़़ रही है दरियाओं की रवानी

बादल बरस रहा है बिजली चमक रही है
खिलवाड़़ कर रहें हैं आपस में आग-पानी

जाओ खु़शाी से लेकर जाती हुई घटाओ
हर साल आ के भरना तुम साल भर का पानी

जैसे बजा रहा है उस पार कोई बंसी
सतरंगी सारी बाँधे नाचे है रूत सुहानी

पानी बरस रहा है निकलो ’नजीर’ घर से
हम-तुम भी तो लें अपने हिस्से की ज़िन्दगानी

शब्दार्थ
<references/>