Last modified on 7 नवम्बर 2014, at 16:30

पपीहा बोलि जारे / पढ़ीस

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:30, 7 नवम्बर 2014 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पपीहा बोलि जा रे !
हाली डोलि जा रे !
बादर बइरी<ref>वैरी, दुश्मन, शत्रु</ref> रूप बनावयिं
मारयिं बूँदन बान।
तिहि पर तुइ पिउ-पिउ ग्वहरावइ
हाँकन हूकु न, मानु।
पपीहा बोलि जा रे !
हाली डोलि जा रे !

तपि-तपि रहिउऊ तंपता साथी
लूकन लूक न लागि।
जागि रहे उयि कहूँ कँधैया
दागि बिरह की आगि।
पपीहा बोलि जा रे !
हाली डोलि जा रे !
छिनु-छिनु पर छवि हायि न भूलयि
हूलयि हिया हमार।
साजन आवयिं तब तुइ आये
आजु बोलु उयि पार।
पपीहा बोलि जा रे !
हाली डोलि जा रे !

शब्दार्थ
<references/>